चित्रकथा कालजयी सन्त
भाग 1 : जन्म से गुरु दक्षिणा तक
- जन्म-काल, स्थान व कुल-परिचय
- आत्मबोध की किरण
- वैराग्य का उदय
- वैवाहिक बन्धन की तैयारी
- गृह-त्याग
- मूलशंकर से शुद्धचैतन्य
- योगियों की खोज में
- सिद्धपुर मेले में पिता से अन्तिम भेंट
- संन्यास की दीक्षा चाणोद में
- योग-साधना एवं स्वाध्याय
- हरिद्वार कुम्भ के मेले में
- सन् 1857 के आस-पास
- ज्ञानार्जन के लिए कठिन पर्वत-यात्राएँ
- पर्वतीय दुर्गा-भक्तों से प्राण-त्राण
- ओखीमठ के स्वामित्व का प्रस्ताव ठुकराया
- अलकनन्दा (गंगा) नदी की दुर्गम यात्रा
- ग्रन्थ का परीक्षण
- जिज्ञासु व निर्भीक दयानन्द नर्मदा नदी के घोर घने जंगल में
- गुरु के चरणों में
- गुरु-सेवी दयानन्द
- संकल्पी स्वामी दयानन्द
- सच्चा साधक
- श्रद्धालु व गुरुभक्त स्वामी दयानन्द
- दयानन्द-सा दूसरा शिष्य नहीं
- गुरु-दक्षिणा
भाग 2 : पाखण्ड खण्डनी पताका की स्थापना व अन्य घटनाएँ
- समाजोत्थान के लिए प्रस्थान
- ईश्वर सर्वव्यापक होने से साकार नहीं हो सकता
- आपके सामने बोलने का साहस किसी का नहीं होता
- पुष्कर में महर्षि का प्रभाव
- अजमेर में पादरियों से शास्त्रार्थ
- ब्रह्मा जी विद्वान् व सच्चरित्र थे
- कर्नल ब्रुक्स से महर्षि की धर्मचर्चा व गोपालन का महत्त्व
- महर्षि के भय से जब महन्त ने नगर ही छोड़ दिया
- मैं शास्त्रार्थ ही नहीं, शस्त्रार्थ भी जानता हूँ
- महाराजा जयपुर का निमन्त्रण
- गुरु से अन्तिम भेंट
- कुम्भ के मेले में पाखण्ड-खण्डनी पताका (हरिद्वार)
- महादेव की पूजा मन्दिर में क्यों?
- मैं तो लोगों को बन्धन-मुक्त कराने आया हूँ
- स्त्रियों को गायत्री – जाप का अधिकार
- मूर्तियों का गंगा में विसर्जन कर्णवास में
- शीत-निवारण में योग का प्रभाव व अभ्यास
- ‘अहं ब्रह्मास्मि’ का तर्कसंगत प्रतिवाद
- छुआछूत के विरोधी
- कर्णवास में रासलीला का खण्डन एवं राव कर्णसिंह से सामना
- मूर्तिपूजा विषयक शास्त्रार्थ में महर्षि जी का सामना सम्भव नहीं
- वही आत्म-प्रेमी है
- स्वार्थी जनों द्वारा समाज-सुधारक महर्षि दयानन्द की प्राण-हानि का प्रयास
- अन्न दूषित नहीं
- अच्छा कर्म ही अच्छा है
- दयालु महर्षि दयानन्द
- महर्षि की प्रेरणा से पाठशाला की स्थापना
- पहलवान शर्मिन्दा हो गए
- मन्दिर निर्माण की अपेक्षा समाज-सेवा के संस्थान श्रेष्ठ हैं
- मूर्तियां बेल-पत्र नहीं खातीं
- स्नेहशील व उदारचेता महर्षि दयानन्द
- वीतराग व तपस्वी महर्षि दयानन्द
भाग 3 : काशी शास्त्रार्थ व अन्य घटनाएँ
- काशी का ऐतिहासिक शास्त्रार्थ
- वैर-भाव से परे
- मैं खुद ही बलि चढ़ा जा रहा हूँ
- सिंह-सी दहाड़
- विनम्रता व क्षमा की प्रतिमूर्ति
- अनधिकृत वस्तु का ग्रहण चोरी
- अपने बल पर भरोसा
- राजपूतों को यज्ञोपवीत दिया
- निर्धन किसान की रोटियाँ
- महर्षि का कर्णवास में पुन: पदार्पण
- राव कर्णसिंह लज्जित हुआ और भयभीत भी
- मुझे बिरादरी से निकाले जाने का भय नहीं
- हम बाबा आदम और माता हव्वा के जमाने के हैं
- केशवचन्द्र सेन से भेंट
- सत्यासत्य जानते हैं, पर मानते नहीं
- और छप्पर बन गया
- कौवा अधिक विद्वान् है
- यज्ञ का महत्त्व
- समाधिस्थ ऋषि-दर्शन से भक्त की तृप्ति
- यही मोक्ष का मार्ग है
- वैष्णव मतावलम्बी द्वारा प्राणहरण की चेष्टा
- वैरागी साधु पर प्रभाव
- आर्यसमाज-नामकरण
- परिश्रमी निर्धन नहीं होते
- पोथियों के पाठ नहीं बेचता
- द्वेष से द्वेष शान्त नहीं होता
- सत्य की राह से नहीं हट सकता
- सहृदयी महर्षि दयानन्द
भाग 4 : आर्य समाज स्थापना व अन्य घटनाएँ
- आर्यसमाज की स्थापना
- वेदमन्त्र सुनने का अधिकार सभी को
- केशों का बढ़ाना त्याग व तपस्या का लक्षण नहीं है
- मूर्तिपूजा अवैदिक है
- पूना में प्रवचन-माला
- नियमित दिनचर्या
- मूर्तिपूजा किसी भी मत की ठीक नहीं
- अज्ञानवश बच्चे मिट्टी खाते हैं, बड़े होकर नहीं
- समाज-सुधारकों की बैठक
- चांदापुर के मेले में
- जो सत्य सनातन है, वही स्वीकार्य है
- पुनर्जन्म होता है
- अप्रसन्नता की परवाह नहीं
- वेदों में लौकिक आख्यान नहीं
- लाहौर में आर्यसमाज के दस नियम
- महर्षि दयानन्द की दया
- बड़प्पन का अर्थ
- पारस्परिक प्रेम का आधार एक साथ खाना नहीं है
- ब्रह्मचर्य का चमत्कार
- ज्ञानी भी, अज्ञानी भी
- जब वेद की प्रामाणिकता की सिद्धि में पत्थर मिले
- जन-कल्याण में मान-अपमान नहीं
- समालोचना करता हूँ, आलोचना नहीं
- सत्य का उपदेश मेरा धर्म
- अज्ञानी हैं, क्षमा कर दें
- माँगने में शोभा नहीं
भाग 5 : निर्वाण व अन्य घटनाएँ
- परमात्मा का उपदेश सबके लिए
- आत्मा ब्रह्म नहीं
- समयबद्धता
- महर्षि के बल की परीक्षा
- देश की प्रथम गोशाला
- महर्षि का हरिद्वार में पुनः आगमन (कुरीतियों का निवारण तथा ब्रह्मवाद का समाधान)
- वैदिक धर्मी के लिए सदाचार आवश्यक है
- योग में बड़ी शक्ति है
- सत्य का प्रकाश मेरा धर्म है
- पादरी स्काट से वार्ता
- जब परमात्मा की कृपा होगी (मुंशीराम की महर्षि से भेंट)
- लो, ये रहे वेद
- सत्य कहने में कोई भय नहीं
- मेरे प्रवचन विरेचक औषध के समान हैं
- मन-मन्दिरों से मूर्तियाँ हटाता हूँ
- थियोसोफिकल सोसायटी व आर्यसमाज में सिद्धान्त भेद
- तोप का भय दिखाने पर भी वेद की श्रुतियाँ ही निकलेंगी
- पं० लेखराम की महर्षि से भेंट
- जन्मदात्री मातृशक्ति वन्दनीया है
- भेदभाव उचित नहीं
- देश – सेवा का चिन्तन
- महर्षि की उच्च योगसाधना
- लौकिक प्रलोभन का कोई मूल्य नहीं
- परोपकारिणी सभा का गठन
- महर्षि दयानन्द–एक प्रबुद्ध लेखक
- सत्य कहने से नहीं चूकता
- महर्षि के विरुद्ध विषपान का षड्यन्त्र
- ऋषि जीवन की अन्तिम वेला के अन्तिम क्षण
- ईश्वर! तेरी इच्छा पूर्ण हो