दयानन्द ने अस्पृश्यता व अछूतपन के अन्याय को सहन न किया और उससे अधिक उनके अपहृत अधिकारों का उत्साही समर्थक दूसरा कोई नहीं हुआ। भारत में स्त्रियों की शोचनीय दशा को सुधारने में भी दयानन्द ने बड़ी उदारता व साहस से काम लिया। वास्तव में राष्ट्रीय भावना और जन-जागृति के विचार को क्रियात्मकरूप देने में सबसे अधिक प्रबल शक्ति उसी की थी।