स्वातन्त्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर
प्रख्यात हिंदूवादी एवं भारतीय स्वतंत्रता सेनानीमहर्षि दयानन्द स्वाधीनता संग्राम के सर्वप्रथम योद्धा और हिन्दूजाति के रक्षक थे। उनके द्वारा स्थापित आर्यसमाज ने राष्ट्र की महान् सेवा की है और कर रही है। स्वतन्त्रता के संग्राम में आर्यसमाजियों का बड़ा हाथ रहा है। महर्षिजी का लिखा अमर ग्रन्थ ‘सत्यार्थप्रकाश’ हिन्दूजाति की रंगों में उष्ण रक्त का संचार करनेवाला है। ‘सत्यार्थप्रकाश’ की विद्यमानता में कोई विधर्मी अपने मज़हब की शेखी नहीं मार सकता।
श्यामजी कृष्ण वर्मा
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं लन्दन में इण्डिया हाउस के संस्थापकमैंने राष्ट्र, जाति तथा समाज की जो सेवा की है उसका श्रेय महर्षि दयानन्द को प्राप्त है। मैंने जो कुछ प्राप्त किया है, उसमें सबसे बड़ा हाथ उस सर्वहितैषी, वेदज्ञ और तेजस्वी युगद्रष्टा का है। मुझे उस स्वतन्त्र विचारक का शिष्य होने में अभिमान है।
श्यामजी कृष्ण वर्मा
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं लन्दन में इण्डिया हाउस के संस्थापकस्वामी दयानन्द सरस्वती को मैं अपना मार्गदर्शक गुरु मानता हूँ। उनके चरणों में रहकर मैंने बहुत कुछ पाया है। उनकी मुझपर सदैव कृपा रहती थी। स्वामीजी की यह इच्छा थी कि विदेशों में भी वैदिक धर्म का प्रचार हो। उन्होंने मुझे विदेशों में वैदिक संस्कृति का प्रचार करने की प्रेरणा दी।
महामना मदनमोहन मालवीय
प्रख्यात हिन्दू नेता एवं शिक्षाविदमहर्षि दयानन्द तपोमूर्त्ति थे। उन्होंने भारत में दिव्य ज्योति प्रकाशित की थी। उन्होंने हिन्दूसमाज को पुनर्जन्म देने के सब प्रयत्न किये थे। वे भारत को स्वतन्त्र और दिव्य देखना चाहते थे। आर्षकाल को पुनः लाने के लिए वे प्रयत्नशील रहे। उन्होंने मृतप्राय हिन्दूजाति में पुनः प्राण संचार किया था। वे हिन्दू संस्कृति की अप्रतिम प्रतिमा तथा भारत माता के अक्षय पात्र थे।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
भारतीय स्वतंत्रता सेनानीऋषि दयानन्द जाज्वल्यमान नक्षत्र थे जो भारतीय आकाश पर अपनी अलौकिक आभा से चमके और गहरी निद्रा में सोये हुए भारत को जागृत किया। ‘स्वराज्य’ के वे सर्वप्रथम सन्देशवाहक तथा मानवता के उपासक थे।
योगी अरविन्द घोष
भारतीय दार्शनिकवह दिव्य ज्ञान का सच्चा सैनिक, विश्व को प्रभु की शरण में लानेवाला योद्धा और मनुष्य व संस्थाओं का शिल्पी तथा प्रकृति द्वारा आत्मा के मार्ग में उपस्थित की जानेवाली बाधाओं का वीर विजेता था और इस प्रकार मेरे समक्ष आध्यात्मिक क्रियात्मकता की एक शक्ति सम्पन्न मूर्त्ति उपस्थित होती है। इन दो शब्दों का, जोकि हमारी भावनाओं के अनुसार एक-दूसरे के सर्वथा भिन्न हैं, मिश्रण ही दयानन्द की उपयुक्त परिभाषा प्रतीत होती है। उसके व्यक्तित्व की व्याख्या की जा सकती है- एक मनुष्य जिसकी आत्मा में परमात्मा है, चर्म चक्षुओं में दिव्य तेज है और हाथों में इतनी शक्ति है कि जीवन-तत्त्व से अभीष्ट स्वरूपवाली मूर्ति गढ़ सके तथा कल्पना को क्रिया में परिणत कर सके। वह स्वयं दृढ़ चट्टान थे। उनमें दृढ़ शक्ति थी कि चट्टान पर घन चलाकर पदार्थों को सुदृढ़ व सुडौल बना सकें।
गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर
नोबेल पुरस्कार विजेतामेरा सादर प्रणाम हो उस महान् गुरु दयानन्द को, जिसकी दृष्टि ने भारत के आध्यात्मिक इतिहास में सत्य और एकता को देखा और जिसके मन ने भारतीय जीवन के सब अंगों को प्रदीप्त कर दिया। जिस गुरु का उद्देश्य भारतवर्ष को अविद्या, आलस्य और प्राचीन ऐतिहासिक तत्त्व के अज्ञान से मुक्त कर सत्य और पवित्रता की जागृति में लाना था, उसे मेरा बारम्बार प्रणाम है। मैं आधुनिक भारत के मार्गदर्शक उस दयानन्द को आदरपूर्वक श्रद्धाञ्जलि देता हूँ, जिसने देश की पतितावस्था में भी हिन्दुओं को प्रभु की भक्ति और मानव समाज की सेवा के सीधे व सच्चे मार्ग का दिग्दर्शन कराया।
एनी बेसेंट
ब्रिटिश सामाजिक कार्यकर्ता एवं भारतीय स्वतंत्रता सेनानीस्वामी दयानन्द ही पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों के लिए का नारा लगाया था। आर्यसमाज के लिए मेरे हृदय में शुभ इच्छाएँ हैं और उस महान् पुरुष के लिए, जिसका आप आर्य आदर करते हैं, मेरे हृदय में सच्ची पूजा की भावना है।
एलेन ओक्टेवियन ह्यूम
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के संस्थापकस्वामी दयानन्द के सिद्धान्तों के विषय में कोई मनुष्य कैसी ही सम्मति स्थिर कर ले, परन्तु यह सबको मान लेना पड़ेगा कि स्वामी दयानन्द अपने देश के लिए गौरव रूप थे। दयानन्द को खोकर भारत को महान् हानि उठानी पड़ी है। वे महान् और श्रेष्ठ पुरुष थे।
जेम्स रेम्ज़े मेकडानल्ड
प्रधानमंत्री, ब्रिटेनआर्यसमाज समस्त संसार को वेदानुयायी बनाने का स्वप्र देखता है। स्वामी दयानन्द ने इसे जीवन और सिद्धान्त दिया। उनका विश्वास था कि आर्यजाति चुनी हुई जाति है, भारत चुना हुआ देश है और वेद चुनी हुई धार्मिक पुस्तक है।
प्रो० रिचर्ड पॉल वुल्कर
जर्मन विद्वानस्वामी दयानन्द निःसन्देह एक ऋषि थे। उन्होंने अपने विरोधियों द्वारा फेंके गये ईंट-पत्थरों को शान्तिपूर्वक सहन कर लिया। उन्होंने अपने में महान् भूत और भविष्य को मिला दिया। वे मरकर भी अमर हैं। ऋषि का प्रादुर्भाव मानव को कारागार से मुक्त करने और जाति-बन्धन तोड़ने के लिए हुआ था। ऋषि का आदेश है – आर्यावर्त्त ! उठ जाग ! समय आ गया है, नये युग में प्रवेश कर, आगे बढ़ ין
डॉ० मारिज विण्टरनित्ज
ऑस्ट्रियन विद्वानहमें वेदों के अध्ययन को प्रबल प्रोत्साहन देने और यह सिद्ध करने में कि मूर्तिपूजा वेद-सम्मत नहीं है, स्वामी दयानन्द के महान् उपकार को अवश्य स्वीकार करना चाहिए। आर्यसमाज के प्रवर्त्तक वर्तमान जाति की मूर्खता और उसकी हानियों के विरुद्ध अपने अनुयायियों को तैयार करने के अतिरिक्त यदि और कुछ भी न करते, तो भी वर्त्तमान भारत के बड़े नेता के रूप में अवश्य सम्मान पा जाते।
कर्नल हेनरी स्टील ऑलकाट
अमेरिकी सैन्य अधिकारी, पत्रकार, अधिवक्ता, तथा थियोसोफिकल सोसायटी के सह-संस्थापक एवं प्रथम अध्यक्षउनकी मृत्यु से भारत ने अपने योग्यतम पुत्रों में से एक को खो दिया। हमारा स्वामीजी से पत्र व्यवहार होता था। सचमुच वे एक आला इन्सान ही नहीं, फ़रिश्ते थे।
राल्फ वाल्डो एमर्सन
अमेरिकी विद्वानयह स्वीकार करना पड़ेगा कि भारत के सांस्कृतिक व राष्ट्र के नव जागरण में स्वामी दयानन्द का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। उनकी मान्यताओं और सिद्धान्तों ने एक बार तो हीनभाव ग्रस्त इस जाति को अपूर्व उत्साह से भर दिया।
हैलीना पैट्रोवना ब्लावाट्स्की
भारत में थियोसॉफिकल सोसाइटी की संस्थापकयह निश्चित है कि शंकराचार्य के पश्चात् दयानन्द से अधिक संस्कृतज्ञ, गम्भीर अध्यात्मवेत्ता, आश्चर्यजनक वक्ता और बुराई का निर्भीक प्रहारक भारत को प्राप्त नहीं हुआ।
फ़्रीड्रिश मैक्समूलर
जर्मन भाषाविद एवं वेदादि शास्त्रों का अंग्रेजी अनुवादक। जन्म से जर्मन होने के बावजूद अपना अधिकांश जीवन इंग्लैण्ड में बिताया और वहीं अध्ययन भी किया।स्वामी दयानन्द सरस्वती ने हिन्दू-धर्म के सुधार का बड़ा कार्य किया और जहाँ तक समाज-सुधार का सम्बन्ध है, वे बड़े उदार हृदय थे। वे अपने विचारों को वेदों पर आधारित और उन्हें ऋषियों के ज्ञान पर अवलम्बित मानते थे। उन्होंने वेदों पर बड़े-बड़े भाष्य किये, जिससे मालूम होता है कि वे पूर्ण विज्ञ थे। उनका स्वाध्याय बड़ा व्यापक था।
संत रोम्याँ रोलाँ
फ्रेंच लेखकऋषि दयानन्द उच्चतम व्यक्तित्व के पुरुष थे। यह पुरुष-सिंह उनमें से एक था जिन्हें यूरोप प्रायः उस समय भुला देता है, जबकि वह भारत के सम्बन्ध में अपनी धारणा बनाता है, किन्तु एक दिन यूरोप को अपनी भूल मानकर उसे याद करने के लिए बाधित होना पड़ेगा, क्योंकि उसके अन्दर कर्मयोगी, विचारक और नेता के उपयुक्त प्रतिभा का दुर्लभ सम्मिश्रण था। दयानन्द ने अस्पृश्यता व अछूतपन के अन्याय को सहन न किया और उससे अधिक उनके अपहृत अधिकारों का उत्साही समर्थक दूसरा कोई नहीं हुआ। भारत में स्त्रियों की शोचनीय दशा को सुधारने में भी दयानन्द ने बड़ी उदारता व साहस से काम लिया। वास्तव में राष्ट्रीय भावना और जन-जागृति के विचार को क्रियात्मकरूप देने में सबसे अधिक प्रबल शक्ति उसी की थी। वह पुनर्निर्माण और राष्ट्रीय संगठन के अत्यन्त उत्साही पैग़म्बरों में से थे।
संत रोम्याँ रोलाँ
फ्रेंच लेखकऋषि दयानन्द ने भारत के शक्तिशून्य शरीर में अपनी दुर्धर्ष शक्ति, अविचलता तथा सिंह पराक्रम फूँक दिया है।
सर मोनियर विलियम्स
ब्रिटिश विद्वानस्वामी दयानन्द एकेश्वरवादी, अपने सिद्धान्तों को वेद पर आधारित माननेवाले, प्रगति समर्थक तथा देशोद्धारक थे।