शरीर केवल परोपकार के लिए
दयानन्द के ऊपर 44 बार जानलेवा हमले हुए, लोग कहते थे, आप सिपाही रखा करें। दयानन्द मना कर देते थे। अन्त तक न कोई सिपाही रखा न सरकार की सुरक्षा, किन्तु मारे जाने का डर बिल्कुल नहीं, पर दुःख है-
“मुझे इसका कुछ शोक नहीं कि मेरा शरीरपात हो जावे, परन्तु इस बात का शोक है कि मैं जिस परोपकार के लिए इस शरीर की रक्षा करता हूं वह उपकार रह जाएगा।”
महर्षि दयानन्द जीवन चरित्र (पं. लेखराम)