समाज सुधार के कार्य

भारत में समय-समय पर अनेक समाज सुधारकों ने समाज सुधार का कार्य किया। परन्तु महर्षि दयानन्द और उनमें मूल अंतर यह था कि महर्षि दयानन्द ने धर्म के नाम पर चल रहे पाखण्ड और कुरीतियों को शास्त्रों से सटीक प्रमाण देकर धर्म-विरुद्ध सिद्ध किया। साथ ही धर्म के सत्य व सरल स्वरुप को प्रतिपादित किया। इसके परिणामस्वरुप जनता ने महर्षि दयानन्द के सुधारों को बढ़ चढ़ कर स्वीकारा और सुधारों की क्रांति ने भारत के जन जन को ओट दिया। महर्षि दयानन्द के बाद उनके अनुयायियों ने उनके समाज सुधार के कार्य को आगे बढ़ाया।

  1. जातिवाद के विरुद्ध शंखनाद
    महर्षि दयानन्द ने भारत में फैले जातिवाद का हर स्तर पर विरोध किया। महर्षि दयानन्द ने अनेक प्रमाण और तर्क देकर सिद्ध किया कि इन प्रचलित जन्मना जातियों का कोई शास्त्रीय आधार नहीं है और न ही इनका कोई उल्लेख किसी शास्त्र में मिलता है। जन्मना जातिव्यवस्था वेद-विरुद्ध है इसलिए जन्म पर आधारित जाति व्यवस्था का समूल नाश होना चाहिए। उन्होंने कहा कि गुण-कर्म-स्वभाव आधारित वर्ण व्यवस्था ही वेद सम्मत है।

    • सबको वेद पढ़ने का अधिकार
      स्वार्थी लोगों ने शूद्रों के वेद पढ़ने पर रोक लगा रखी थी। महर्षि दयानन्द ने घोषणा की कि वेद पढ़ना प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है।
    • समानता का अधिकार
      महर्षि ने कहा कि सब मनुष्यों को बिना भेदभाव के समान अधिकार मिलने चाहियें। कोई व्यक्ति जन्म के आधार पर ऊँचा या नीचा नहीं हो सकता।
    • अस्पृश्यता
      महर्षि दयानन्द ने जन्म के आधार पर छुआछूत का प्रबल विरोध किया।
    • अंतरजातीय विवाह
      महर्षि दयानन्द ने सभी हिन्दुओं से जाति बंधन तोड़कर आपस में विवाह करने का आह्वान किया।
  2. नारी सशक्तिकरण
    एक ओर तो शास्त्रों में नारी को पूज्य बताया गया था जबकि दूसरी ओर नारी की स्थिति पांव की जूती के समान थी। स्वार्थी जनों ने नारी को अधिकारहीन बनाकर उसकी स्थिति पशुओं से भी बदतर बना रखी थी। महर्षि दयानन्द ने एक ओर समाज में फैली नारी शोषक कुरीतियों का विरोध किया वहीँ दूसरी ओर नारी को उसके जन्मसिद्ध अधिकार भी दिए।

    • समानता का अधिकार
      महर्षि दयानन्द ने शास्त्रों से प्रमाण देकर घोषणा की कि स्त्री-पुरुष समान हैं। उनमें किसी का स्तर ऊँचा या नीचा नहीं है।
    • नारी को यज्ञोपवीत का अधिकार
      महर्षि दयानन्द ने शास्त्रों से प्रमाण देकर सिद्ध किया कि यज्ञोपवीत विद्या का चिन्ह है और इतिहास में अनेक विदूषी नारियों का वर्णन आता है। अतः पुरुषों की भांति स्त्रियों को भी यज्ञोपवीत पहनने का समान अधिकार है।
    • नारी को शिक्षा का अधिकार
      स्वार्थी लोगों ने स्त्रियों को असहाय बनाये रखने के लिए उनके पढ़ने-लिखने पर रोक लगा रखी थी। कुछ समाज सुधारकों ने बालिकाओं के लिए एक-दो पाठशालाएं खोली थीं। परन्तु ज्यादातर स्त्रियों के लिए पढ़ाई असम्भव बात थी। ऐसे में महर्षि दयानन्द ने नारी को शिक्षा का समान अधिकार दिया।
    • नारी वेद पढ़ने का अधिकार
      स्वार्थी लोगों ने स्त्रियों के वेद पढ़ने पर रोक लगा रखी थी। महर्षि दयानन्द ने घोषणा की कि वेद पढ़ना स्त्री सहित प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है।
    • बाल विवाह
      जब नन्हे मुन्ने बच्चों को गोदी में लेकर विवाह कर दिया जाता था। उस काल में सर्वप्रथम महर्षि दयानन्द ने विवाह के लिए न्यूनतम आयु (लड़के की 25 वर्ष एवं लड़की की 16 वर्ष) घोषित की।
    • बहुविवाह
      पुरुष अनेक स्त्रियों से विवाह कर लेते थे और वे स्त्रियाँ अनेक दुःख पाती थीं। महर्षि दयानन्द ने शास्त्रों से प्रमाण देकर सिद्ध किया कि स्त्री-पुरुष को एक समय में एक ही विवाह करना चाहिए।
    • स्वयंवर
      कन्याओं को उनकी मर्जी पूछे बिना ही पशुओं की भांति किसी के भी साथ ब्याह दी जाती थीं। महर्षि दयानन्द ने स्वयंवर की पुरातन परम्परा को पुनः जीवित करने का कार्य किया जिसमें लड़के लड़की को अपनी इच्छा से अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार मिला।
    • विधवा विवाह
      यद्यपि कुछ समाज सुधारकों ने विधवा विवाह का कार्य पहले ही प्रारम्भ कर दिया था। परन्तु इसको जन साधारण में स्वीकृति नहीं मिली थी। महर्षि दयानन्द ने विधवा विवाह को समाज में स्वीकृति दिलाने का कार्य किया।
    • सती प्रथा
      यद्यपि कुछ समाज सुधारकों ने सती प्रथा के विरोध का कार्य पहले ही प्रारम्भ कर दिया था और अंग्रेजों ने सती प्रथा उन्मूलन कानून भी पारित कर दिया था। परन्तु इसको जन साधारण में यह चलता रही। महर्षि दयानन्द ने सती प्रथा का विरोध किया।
    • परदा प्रथा
      विदेशी आक्रान्ताओं के प्रभाव से हिन्दुओं ने भी अपनी महिलाओं को परदा में रखना शुरू कर दिया था जबकि आर्य इतिहास में इसका कोई वर्णन नहीं मिलता। महर्षि दयानन्द ने इसका विरोध किया और स्त्रियों को इससे मुक्ति दिलवाई।
    • देवदासी प्रथा
      पाखंडियों ने स्त्रियों के शोषण का एक तरीका देवदासी प्रथा के रूप में बना रखा था। इसमें छोटी छोटी बच्चियों की मूर्तियों से विवाह कर दिया जाता था। आगे चल कर इनका शोषण किया था। महर्षि दयानन्द इसका कड़ा खण्डन किया।
    • वेश्यावृत्ति
      पुरुषों द्वारा वेश्याओं से सम्बन्ध रखने से समाज में वेश्यावृत्ति को बढ़ावा मिलता है। इससे समाज में व्यभिचार फैलता था और नई स्त्रियों को देह व्यापार में धकेला जाता था। महर्षि दयानन्द इसका कड़ा विरोध किया। यहाँ तक कि जोधपुर के महाराजा को वेश्या से सम्बन्ध रखने के लिए सबके सामने डांटा था।
  3. अन्य सामाजिक कुरीतियां, दुर्व्यसन व पाखण्ड
    • सगोत्र विवाह
      महर्षि दयानन्द ने पिता के गोत्र एवं माता के कुल की 6 पीढ़ियों में विवाह करने का निषेध किया।
    • मृतक श्राद्ध – मृतक भोज
      महर्षि दयानन्द ने घोषणा की कि अंतिम संस्कार के पश्चात् मृतक के प्रति कोई संस्कार शेष नहीं रहता। मृतक की आत्मा के नए शरीर में जन्म ले लेने के बाद नये रिश्ते नाते बन जाते हैं और पिछले जन्मों से कोई सम्बन्ध शेष नहीं रहता। अतः उन्होंने मृतक श्राद्ध व मृतक भोज की प्रथाओं का कड़ा विरोध किया।
    • पशु बलि व नर बलि प्रथा
      पाखंडियों ने अश्वमेध यज्ञ, गौमेध यज्ञ व नरमेध यज्ञ का गलत अर्थ बताकर बलि प्रथा को धार्मिक कार्य घोषित किया हुआ था। महर्षि दयानन्द ने शास्त्रों से प्रमाण देकर बलि प्रथा को पाखण्ड सिद्ध किया।
    • गुरुडम
      पाखंडियों ने यह प्रचलित कर दिया कि गुरु का स्थान परमेश्वर से भी ऊँचा है। भोले भाले भक्त परमेश्वर को छोड़ गुरु की सेवा सुश्रुषा में ही लगे रहते। महर्षि दयानन्द ने इसका खण्डन किया। उन्होंने कहा कि परमेश्वर सब गुरुओं का भी गुरु है। सृष्टि रचना, पालन और प्रलय करने वाले सर्वशक्तिमान परमेश्वर के तुल्य गुरु कभी नहीं हो सकता। परमेश्वर ही सर्वोपरि है।
    • शवों को दफनाना या नदी में बहाना
      महर्षि दयानन्द ने शवों को दफनाने या नदी में बहाने की प्रथाओं का विरोध किया और इससे पर्यावरण को होने वाली हानियों को बताया। उन्होंने शव का दाह करने के लाभों को बता कर इसको ही सर्वश्रेष्ठ तरीका बताया।
    • मृत बच्चों को दफनाना
      महर्षि दयानन्द ने बच्चों के शवों को दफनाने की प्रथा का विरोध किया और शव का दाह करने को ही उचित बताया।
    • समुद्र यात्रा का निषेध
      पाखंडियों ने यह प्रचलित कर दिया कि समुद्र या विदेश यात्रायें धर्म विरुद्ध हैं। महर्षि दयानन्द ने इसका खण्डन किया और इतिहास के उदाहरणों से सिद्ध किया कि पूर्व काल में भी समुद्र व विदेश यात्रायें होती रही हैं। विदेशों की कन्याओं से विवाह सम्बन्ध और व्यापार इसके प्रमाण हैं।
    • भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, चुड़ैल, जादू, टोना, चमत्कार
      महर्षि दयानन्द ने समाज में प्रचलित अनेक अंधविश्वासों का खण्डन किया।
    • मांसाहार
      महर्षि दयानन्द ने मांसाहार का कड़ा विरोध किया और शाकाहार को मनुष्यों का भोजन बताया
    • नशा सेवन
      महर्षि दयानन्द ने सभी प्रकार के नशे का कड़ा विरोध किया। उन्होंने धार्मिक कार्यों के नाम पर नशा करने की प्रवृत्ति को अधर्म घोषित किया। उनके अनुसार जड़ी बूटियों का औषधीय उपयोग तो उचित है परन्तु नशा करना सर्वथा अनुचित है।