यजुर्वेद भाषा-भाष्य
इसमें ऋषि दयानन्द रचित संस्कृतभाग को हटाकर केवल भाषा में अन्वयानुसारी पदार्थ और भावार्थ संकलित किया गया है।
यजुर्वेदभाष्य
इसमें ऋग्वेद के समान ही मूलमन्त्र, पदपाठ, पदार्थभाष्य, अन्वय, भावार्थ संस्कृत में और आर्यभाषा में अन्वयानुसार अर्थ और भावार्थ दिये गये हैं।
ऋग्वेदभाष्य
इसमें मूलमन्त्र, पदपाठ, संस्कृत में पदार्थभाष्य, अन्वय और भावार्थ देकर पुनः आर्यभाषा में अन्वयानुसार अर्थ और भावार्थ दे दिया गया है। महर्षि ने तो केवल संस्कृत भाषा की रचना की थी। उसकी भाषा पण्डितों ने बनाई है। यह भाष्य केवल मण्डल 7। सूक्त 61 । मं० 2 तक ही हुआ है। ऋषि दयानन्द अपने जीवन-काल में इसे समाप्त नहीं कर सके।