“सब मनुष्यों को उचित है कि सब के मतविषयक पुस्तकों को समझ कर कुछ सम्मति वा असम्मति देवें वा लिखें नहीं तो सुना करें।”

(सत्यार्थप्रकाश अनुभूमिका समुल्लास 13)