जब तक इस मनुष्य जाति में परस्पर मिथ्यामतान्तर का विरुद्ध वाद न छूटेगा तब तक अन्योऽन्य को आनन्द न होगा।

(सत्यार्थप्रकाश उत्तरार्द्ध अनुभूमिका)