जिस जिस कर्म से तृप्त अर्थात् विद्यमान माता पितादि पितर प्रसन्न हों और प्रसन्न किये जाये उसका नाम तर्पण है। परन्तु यह जीवितों के लिए हैं मृतकों के लिए नहीं।

(सत्यार्थप्रकाश समुल्लास 3)