जैसे “शक्कर-शक्कर” कहने से मुख मीठा नहीं होता वैसे सत्यभाषणादि कर्म किये बिना “राम-राम” कहने से कुछ भी नहीं होगा।

(सत्यार्थप्रकाश समुल्लास 11)