• धन का उपयोग क्या करें?

    समाज के दान व धर्म के लिए दिए जाने वाला धन अन्यान्य कार्यों में खर्च होता था, इसलिए दयानन्द धन का सामजिक जीवन के उत्थान के लिए उपयोग करने की व्यवस्था देते हैं-

    “जो धन प्राप्त हो उसे तीन कार्यों मे व्यय करना। 1. वेदों के सम्बन्ध में ज्ञान और पुस्तक प्रचार में। 2. सदाचार की शिक्षा देने वाली सभाओं की सहायता में। 3. दीन दरिद्रों की सहायता में।”

    (ऋषि दयानन्द सरस्वती के पत्र और विज्ञापन (भाग 1))

  • जो कहना – स्पष्ट कहा-सीधा कहा

    दोगलापण मुझमें नहीं हैः

    “मैं अमृत को विष में मिश्रित करके देना नहीं चाहता। सच्चाई को छिपाना महापाप है। अन्त में सत्य ही की जय हुआ करती है।”

    (श्रीमद्दयानन्द प्रकाश)

  • दोषों का स्वीकार

    दयानन्द स्वंय को मनुष्य मानते हैं, देवता या ईश्वर नहीं। इसलिए वे सरल स्वभाव से कहते हैं-

    “हम सर्वज्ञ नहीं और सब बातें हमें उपस्थित (प्रत्यक्ष) भी नहीं। हमारे बोलने में अनन्त दोष होते होंगे। इसका हमें ज्ञान भी नहीं है। दोष बतलाने पर हम स्वीकार करेंगे। सत्य की छानबीन होनी चाहिए, वितण्डा नहीं होनी चाहिए। यही हमारी बुद्धि में आता है।”

    (पूना प्रवचन (उपदेश मंजरी))

  • शरीर केवल परोपकार के लिए

    दयानन्द के ऊपर 44 बार जानलेवा हमले हुए, लोग कहते थे, आप सिपाही रखा करें। दयानन्द मना कर देते थे। अन्त तक न कोई सिपाही रखा न सरकार की सुरक्षा, किन्तु मारे जाने का डर बिल्कुल नहीं, पर दुःख है-

    “मुझे इसका कुछ शोक नहीं कि मेरा शरीरपात हो जावे, परन्तु इस बात का शोक है कि मैं जिस परोपकार के लिए इस शरीर की रक्षा करता हूं वह उपकार रह जाएगा।”

    (महर्षि दयानन्द जीवन चरित्र (पं. लेखराम))

  • दलितों की चिन्ता

    150 साल पहले ये दृष्टि किसी ओर की थी क्या?

    "ईसाई लोग दलितों को ईसाई बनाने के भरसक यत्न कर रहे हैं और रुपया पानी की तरह बहा रहे हैं। इधर हिन्दुओं के धर्म नेता हैं जो कुम्भकर्ण की नींद सो रहे हैं। यही चिन्ता मुझे विकर कर रही है।"

    (महर्षि दयानन्द जीवन चरित (देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय))

  • भ्रूणहत्या निषेध

    महर्षि की दृष्टि हर उस बात पर गई जो समाज के ताने-बाने को नष्ट कर रहा है।

    “अब इस समय में नियोग और पुर्नविवाह दोनों के बन्द होने से आज कल के आर्य लोगों में जो-जो भ्रष्टाचार फैला हुआ है, वह आप लोग देख ही रहे हैं। हजारों गर्भ गिराये जाते हैं। भ्रूणहत्याएँ होती हैं। एक गर्भ गिराने से एक ब्रह्म हत्या का पाप होता है। सोचो कि इस देश में कितनी ब्रह्महत्यायें प्रतिदिन होती हैं।”

    (ऋषि दयानन्द सरस्वती के पत्र और विज्ञापन (भाग 1))

  • स्त्रियों के लिए बाहरी बाबाओं गुरु बनाने के बारे

    ऋषि दयानन्द तब तथाकथित बाबाओं के चरित्र को पहचान चुके थे, निरन्तर यात्राओं में, खासकर धार्मिक स्थानों में उन्होंने जो गड़बड़ देखी तो उन्होंने ये उपदेश दिया-

    "एक दिन कुछ स्त्रियां दोपहर के समय विशेष आज्ञा प्राप्त करके स्वामीजी के पास उपदेश सुनने के अभिप्राय से गईं और स्वामीजी से पूछा कि ज्ञान और शान्ति किस प्रकार हो सकती है? स्वामीजी ने उनसे कहा कि “तुम्हारे पति तुम्हारे गुरु हैं, उन्हीं की सेवा तुमको करनी चाहिए, किसी साधु को गुरु मत बनाओ और विद्या पढ़ो। तुम अपने पतियों को यहां भेजा करो और उनके द्वारा हमारे उपदेश से लाभ उठाया करो।” उस दिन के पश्चात् स्वामीजी ने स्त्रियों का आना बन्द कर दिया।"

    (श्रीमद्दयानन्द जीवन चरित्र)

  • गोवध और विधवा पीड़ा

    देश के सर्वनाश के कारण क्या?

    "भाई! इससे अधिक हृदय विदारक दारुण वेदना और क्या हो सकती है कि विधवाओं की दुःखभरी आहों से, अनाथों के निरन्तर आर्तनाद से और गो-वध से इस देश का सर्वनाश हो रहा है।"

    (श्रीमद्दयानन्द प्रकाश)

  • गर्भपात रोकने सम्बन्ध में

    महर्षि की दृष्टि हर उस बात पर गई जो समाज के ताने-बाने को नष्ट कर रहा है।

    “मैं इन फलों का विचार करता हूं कि हजारों बालकों के जीवन बचाए जायेंगे यदि गर्भपातन बन्द या कम हो जाएगा, इस प्रकार नियोग या विधवाओं का पुर्नविवाह अन्ततः प्रचलित होगा…।”

    (ऋषि दयानन्द सरस्वती के पत्र और विज्ञापन (भाग 1))

  • स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार

    स्त्रियों का उत्थान

    "आजकल स्त्री को विद्या पढ़ने का अधिकार नहीं है। वह शूद्र के समान है। यदि स्त्रियाँ पढ़ी-लिखीं होती तो इन पण्डितों की गड़बड़ाहट का खण्डन करके एक घड़ी में इनका मुँह बन्द कर देतीं।"

    (पूना प्रवचन (उपदेश मंजरी))