छाती के नीचे वस्त्र लपेटे हुए आसन से बैठे

ऋषि दयानन्द संवत् 1924 ( 1867 ई०) के कुम्भ के मेले में हरिद्वार जाते हुए मेरठ में ठहरे थे। उसी समय उनका यह चित्र लिया गया था। चित्र से भी ऋषि दयानन्द की आयु 35-40 के मध्य की प्रतीत होती है और मुखमण्डल बड़ा तेजस्वी है। मुझे यह चित्र सन् 1926 में ऋषि दयानन्द के पत्रों का अन्वेषण करते हुए मेरठ से मिला था।
– महाशय मामराज जी खतौली वाले

सर्वस्व त्यागी दण्डधारी खड़े हुए

ऋषि दयानन्द का यह चित्र विक्रम सं. 1924 (=सन् 1867 ई०) में हरिद्वार के कुम्भ मेले (जहाँ कुटिया पर पाखण्ड खण्डनी पताका लगी हुई थी) के अन्तिम समय में लिया गया था, ऐसा पुराने आर्य व्यक्तियों से ज्ञात हुआ है। इसी चित्र के आधार पर चित्रशाला पूना द्वारा एक बड़ा चित्र छपा था। यह मैंने 25 दिसम्बर 1926 को फर्रुखाबाद के महाशय झुन्नीलाल जी आर्य (वृद्ध) के पास देखा था।
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समाधि दशा में कौपीन मात्र धारण किये

यह चित्र लगभग सं. 1925 (1868 ई०) का है। इसमें ऋषि चौकी पर समाधि मुद्रा में कौपीन मात्र धारी नग्न बैठे हुए हैं, पास में दण्ड रखा हुआ है। छोटे बालों की दाढ़ी पर भस्म लगी हुई है। यह चित्र फर्रुखाबाद में गंगा के तट पर लाला श्यामलाल सिद्धगोपाल जगन्नाथ की बड़ी विश्रान्त पर लिया गया था, ऐसा कहा जाता है। यह चित्र मुझे ऋषि दयानन्द के पत्रों का अन्वेषण करते हुए 31 जनवरी 1927 को रायबहादुर लाला दुर्गादास के पुत्र बा. चन्द्रप्रकाश जी से (उनके चित्रों वाली पुरानी अलबम में से) मिला था।
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कुरसी पर वस्त्र पहने कर बैठे हुए

यह चित्र आश्विन सं. 1931 (अक्टूबर सन् 1874) में श्रीमान् कृष्णराव जी गोलवलकर एक्स्ट्रा असिस्टैण्ट कमिश्नर जबलपुर ने ऋषि दयानन्द को अपने स्थान पर ले जाकर और अपने यहाँ से वस्त्र पहना कर कुरसी पर बैठा कर खिंचवाया था। इस चित्र के पास टेबुल के सहारे मुड़ी मूठ की बेंत रखी है। इस चित्र को देवेन्द्र बाबू ने स्वयं वहाँ जाकर देखा था।
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कुरसी पर बैठे हुए सामने के भाग का

यह चित्र सं. 1931 (1875) में गिरगाँव बम्बई में उतारा गया था। इसमें ऋषि दयानन्द कपड़े पहने हुए कुरसी पर बैठे हैं, सिर पर साफा बँधा हुआ है और साथ में मुड़ी हुई बेंत भी है। इसे श्री स्वामी सत्यानन्द जी ने बम्बई से खोजा था। इस चित्र के फट जाने से पैर का कुछ भाग नष्ट हो गया है।
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पगड़ी बाँधे, वस्त्र पहने, कुरसी पर बैठे हुए

यह चित्र सं. 1932 (सन् 1875) में दूसरी बार बम्बई गमन के अवसर पर बाबू हरिश्चन्द्र चिन्तामणि ने तैयार किया था। इसका उल्लेख श्री देवेन्द्र बाबू द्वारा संकलित जीवन-चरित्र के पृष्ठ 336 में मिलता है। इस चित्र में ऋषि दयानन्द एक ओर मुँह किये पगड़ी आदि वस्त्र धारण किये हुए कुरसी पर बैठे हैं। इसे मैंने बरेली के साहकारे मोहल्ले वाले कुँवर गंगाचरण जी के पास 28 नवम्बर 1926 को देखा था।
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पगड़ी बाँधे, बैठे हुए, पुस्तक खुली हुई

इस चित्र में ऋषि दयानन्द फुन्दे वाली पगड़ी बाँधे हुए बैठे हैं, सामने पुस्तक खुली हुई है और चाँदी की मूठ वाला दण्ड पास में रखा है। अतिसार रोग के कारण शरीर कुछ दुर्बल हो रहा है। यह सं. 1936 (सन् 1879) में लिया गया था। इसका छोटा-सा चित्र महात्मा हंसराज जी ने रा. ब. संसारचन्द्र जी से प्राप्त करके श्री पं. भगवदत्त जी को दिया था, उसी से उन्होंने बड़ा चित्र बनवा कर दयानन्द कॉलेज के लालचन्द्र पुस्तकालय में लगवाया था।
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समाधि मुद्रा में

यह चित्र सं. 1936 (सन् 1879) में मेरठ में खींचा गया था। इसकी प्रतिलिपि महात्मा मुन्शीराम जी (पश्चात्- श्री स्वामी श्रद्धानन्द जी) कृत ‘कल्याण मार्ग का पथिक’ पुस्तक में लगी है। इसकी एक प्रति मुझे पत्रों का अनुसन्धान करते हुए 8 मार्च 1927 को ऋषि भक्त रा. ब. बाबू छेदीलाल (पूर्व-ठेकेदार कमसरियट मेरठ) कानपुर वालों के भतीजे बा. जगतनारायण जी ने दूसरे चित्रों (रमा बाई, कर्नल ) ने पुरानी एलबम में से निकालकर दी थी।
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वस्त्र पहने कुरसी पर बैठे हुए, हाथ में चाँदी की मूठ का दण्डा

इस चित्र में ऋषि दयानन्द सारे वस्त्र पहने हुए हैं, हाथ में चाँदी की मूठ का दण्ड लिए हुए हैं। यह देहरादून में कार्तिक या मार्गशीर्ष सं 1937 (नवम्बर 1880) में लिया गया था, ऐसा कहा जाता है। श्री देवेन्द्रबाबू द्वारा संकलित जीवन-चरित्र के पृष्ठ 624 से इतना तो स्पष्ट है कि सं. 1937 (सन् 1880) में देहरादून में ऋषि दयानन्द का एक चित्र लिया गया था।
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कुरसी पर बैठे हुए, मेज पर पुस्तकें तथा गुलदस्ता

यह चित्र शाहपुरा में सं. 1940 (सन् 1883) के पूर्वाद्र्ध में लिया गया था। श्री स्व. महाराजा नाहरसिंह जी ने मथुरा शताब्दी के अवसर पर आर्य चित्रावली में प्रकाशनार्थ महाशय गोविन्दराम हासानन्द को दिया था। यह चित्र ‘वेदप्रकाश’ देहली के सं. 2010 के ‘दयानन्द ग्रन्थ संग्रह’ नामक विशेषांक में छपा है।
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कुरसी पर बैठे हुए ब्र. रामानन्द के साथ

इस चित्र में ऋषि दयानन्द कुरसी पर बैठे हुए हैं, पैर में खड़ाऊँ पहने हुए हैं, पास में एक ओर ब्र. रामानन्द खड़ा है तथा दूसरी ओर मेज पर तीन पुस्तकें रखी हैं। यह चित्र सम्भवत: शाहपुरा में सं. 1940 के प्रारम्भ में लिया गया होगा। इसी चित्र को रामानन्द के पास भेजने का उल्लेख ऋषि दयानन्द के वैशाख शु. 4 सं. 1940 (10 मई 1883) के रामानन्द के नाम लिखे पत्र में मिलता है।
– महाशय मामराज जी खतौली वाले