महर्षि दयानन्द सरस्वती
ऐसा निराला व्यक्तित्व
जिसमें क्रियाशीलता कूट कूट कर भरी है,
किन्तु सिद्धान्तनिष्ठ होने पर भी जो व्यावहारिक है।
आत्मा और अन्तःकरण की गहराई तक पहुंचा हुआ,
किन्तु सदा वर्तमान की सोचने वाला, तथा अच्छे भविष्य के लिए कर्म-तत्पर है।
सदा परिवर्तित होने वाले संसार से भी उचित को ग्रहण करने के लिए इच्छुक,
किन्तु संसार के अनुचित दबाव के समक्ष न झुकने वाला।
स्वदेश को पुनः विश्व का शिरोमणि बनाने का लक्ष्य,
किन्तु सभी के लिए अच्छे और सुखद जीवन का स्वप्न देखने वाला।
केवल धार्मिक संतुष्टि ही नहीं,
किन्तु सामाजिक और आर्थिक संतुष्टि को लक्ष्य मानने वाला।