- सत्य
महर्षि दयानन्द सत्य की स्थापना के लिए जिये और बलिदान हुए। असत्य के तूफ़ान के समक्ष उन्होंने सत्य की ज्वाला स्थापित की। आम जनता असत्य को छोड़ कर सत्य की प्रवृत्त हुई। आगे चलकर स्वतंत्र भारत ने अपना ध्येय वाक्य ही “सत्यमेव जयते” को स्वीकार किया। - स्वराज्य
महर्षि दयानन्द द्वारा ब्रिटिश काल में दासता के विरुद्ध सर्वप्रथम वैदिक शब्द स्वराज्य का उद्घोष किया। आगे चलकर यही क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों का मूल मन्त्र बना। बाल गंगाधर तिलक ने घोषणा की कि स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य को अपनाया। - स्वदेशी
महर्षि दयानन्द द्वारा ब्रिटिशरों द्वारा भारतीयों पर थोपी जा रही विदेशी वस्तुओं का सर्वप्रथम विरोध किया और स्वदेश में निर्मित वस्तुओं और उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए स्वदेशी का उद्घोष किया। आगे चलकर यही क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों ने बढ़ चढ़ कर स्वदेशी को आन्दोलन का रूप दे दिया। आज मेड इन इण्डिया इसी स्वदेशीवाद की देन है। - सांस्कृतिक स्वाभिमान
महर्षि दयानन्द से पूर्व विदेशी विधर्मी सनातन वैदिक धर्मियों में व्याप्त पाखंडों और कुरीतियों को दिखा दिखा कर उनकी खिल्ली उड़ाते थे। महर्षि दयानन्द ने इन पाखंडों और कुरीतियों को शास्त्र विरुद्ध सिद्ध कर सनातन वैदिक धर्म का सत्य स्वरुप दिखाया जिससे अपने धर्म के प्रति उसके अनुयायियों में स्वाभिमान पुनः जागृत हुआ। - स्वाध्याय
महर्षि दयानन्द द्वारा किये गये खण्डन-मण्डन के परिणाम स्वरुप आम जनता में भी ग्रंथों का स्वाध्याय करने की प्रवृत्ति प्रारम्भ हुई। इसका परिणाम यह हुआ कि गुरुकुल की शिक्षा से वंचित रह गये लाखों लोग अपने धर्म ग्रंथों का सही अर्थ जानने लगे और विधर्मियों के झूठे दुष्प्रचार का मुंह तोड़ जवाब देने में सक्षम हुए। - शास्त्रार्थ
महर्षि दयानन्द ने सत्य-असत्य के निर्णय के लिए शास्त्रार्थ की वैदिक परम्परा को पुनः प्रारम्भ किया। उन्होंने न केवल विधर्मियों को ललकारा बल्कि स्वधर्म में पाखण्ड फ़ैलाने वाले पोपों के किलों को भी ध्वस्त किया। इसके परिणाम स्वरुप हजारों की संख्या में शास्त्रार्थ होने लगे और लाखों की संख्या में जनता को पाखंडियों की असलियत का ज्ञान हुआ। - वेदों की सर्वोच्चता
महर्षि दयानन्द से पूर्व धर्म के ठेकेदारों ने अपनी मनगढ़ंत बातों को चलाने के लिए मानव निर्मित साहित्य को वेदों के समकक्ष महत्व दे रखा था। इससे आम जनता में भारी भ्रम की स्थिति थी। महर्षि दयानन्द द्वारा वेदों की सर्वोच्चता की घोषणा के परिणाम स्वरुप आज वेदों को सनातन वैदिक धर्म का सर्वोच्च धर्म ग्रन्थ माना जाता है। - वेदों की वैज्ञानिकता
महर्षि दयानन्द से पूर्व वेदों में केवल कर्मकाण्ड का विषय माना जाता था। महर्षि दयानन्द ने वेदों को विज्ञान का पर्याय घोषित किया। उन्होंने वेदों में वर्णित विज्ञान के अनेक सूत्र उद्घाटित किये जिन्हें बाद में पश्चिमी विज्ञान ने स्वीकार किया। उन्हीं के साहित्य से उनके एक भक्त शिवकर बापूजी तलपड़े ने आधुनिक विश्व के पहले विमान की रचना की। - वेद की उपलब्धता
महर्षि दयानन्द ने घोषित किया कि वेद पढ़ना प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। जन जन तक वेदों को पहुँचाने के लिए महर्षि दयानन्द के संकल्प के फलस्वरूप आज वेद का पुस्तक बिना किसी भेदभाव के जनसाधारण को उपलब्ध है। - वेद पठन पाठन
महर्षि दयानन्द ने वेदों के पठन-पाठन और श्रवण को आर्यों का परम धर्म बताया। पहले जहाँ वेदों पर जन्मना ब्राहमणों का एकाधिकार माना जाता था वहीं महर्षि दयानन्द ने समाज के सभी वर्गों को वेद पढ़ने का अधिकार दिया। आज आर्य समाज मन्दिरों, गुरुकुलों एवं घरों में वेदों का पठन पाठन एवं श्रवण होता है। - विवाह की न्यूनतम आयु
जब नन्हे मुन्ने बच्चों को गोदी में लेकर विवाह कर दिया जाता था तब महर्षि दयानन्द ने विवाह के लिए सर्वप्रथम न्यूनतम आयु (लड़के की 25 वर्ष एवं लड़की की 16 वर्ष) घोषित की। साथ ही जनसाधारण को जागृत किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि बड़े पैमाने पर बाल विवाह रुक गये। आगे चलकर महर्षि दयानन्द के ही अनन्य भक्त जज हरबिलास शारदा ने विवाह की न्यूनतम आयु के लिए 1929 में कानून बनवाया जो कि शारदा एक्ट के नाम से प्रसिद्ध है। - बहुविवाह निषेध
जब हिन्दू समाज में एक पुरुष का अनेक महिलाओं से विवाह करना सामान्य बात थी तब महर्षि दयानन्द ने बहुविवाह को वेद विरुद्ध घोषित करते हुए इसके निषेध की घोषणा की। साथ ही जनसाधारण को जागृत किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि बड़े पैमाने पर बहुविवाह रुक गये।
प्रभावginni2023-11-24T15:40:32+05:30