यह निश्चित है कि शंकराचार्य के पश्चात् दयानन्द से अधिक संस्कृतज्ञ, गम्भीर अध्यात्मवेत्ता, आश्चर्यजनक वक्ता और बुराई का निर्भीक प्रहारक भारत को प्राप्त नहीं हुआ।