स्वामी दयानन्द सरस्वती को मैं अपना मार्गदर्शक गुरु मानता हूँ। उनके चरणों में रहकर मैंने बहुत कुछ पाया है। उनकी मुझपर सदैव कृपा रहती थी। स्वामीजी की यह इच्छा थी कि विदेशों में भी वैदिक धर्म का प्रचार हो। उन्होंने मुझे विदेशों में वैदिक संस्कृति का प्रचार करने की प्रेरणा दी।