यह स्वीकार करना पड़ेगा कि भारत के सांस्कृतिक व राष्ट्र के नव जागरण में स्वामी दयानन्द का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। उनकी मान्यताओं और सिद्धान्तों ने एक बार तो हीनभाव ग्रस्त इस जाति को अपूर्व उत्साह से भर दिया।