स्वामी दयानन्द निःसन्देह एक ऋषि थे। उन्होंने अपने विरोधियों द्वारा फेंके गये ईंट-पत्थरों को शान्तिपूर्वक सहन कर लिया। उन्होंने अपने में महान् भूत और भविष्य को मिला दिया। वे मरकर भी अमर हैं। ऋषि का प्रादुर्भाव मानव को कारागार से मुक्त करने और जाति-बन्धन तोड़ने के लिए हुआ था। ऋषि का आदेश है – आर्यावर्त्त ! उठ जाग ! समय आ गया है, नये युग में प्रवेश कर, आगे बढ़ ין