उनकी मृत्यु से भारत ने अपने योग्यतम पुत्रों में से एक को खो दिया। हमारा स्वामीजी से पत्र व्यवहार होता था। सचमुच वे एक आला इन्सान ही नहीं, फ़रिश्ते थे।