महर्षि दयानन्द
अद्भुत प्रतिभा के धनी थे।
प्राचीन भारत के लौकिक और वैदिक साहित्य का उनका ज्ञान अगाध था। संस्कृत भाषा पर उनका आश्चर्यजनक अधिकार था परन्तु उन्होंने हिन्दी में ही लिखना और बोलना उचित समझा। लेखक भी इतने महान् थे कि उन्होंने अपने केवल दस साल के कार्यकाल में 66 पुस्तकें लिख डालीं।
कुल मिलाकर उनका लेखन कार्य लगभग 50,000 फुलस्केप पृष्ठों में है। महर्षि की प्रकाशित और अप्रकाशित सभी पुस्तकों की सूची यहां दी जा रही है।