गुरु से विदा लेने के पश्चात् कार्यक्षेत्र में कदम रखते ही महर्षि दयानन्द ने देश की जनता की दीन एवं पतित स्थिति को देखा। कमजोर, निराश, दिशाहीन और असहाय देशवासियों को देखकर उनका हृदय द्रवित हो गया। जनता पर कुटिल उद्देश्यों वाले अहंकारी और सामंतवादियों का निरंकुश वर्चस्व था। उनकी इस दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेदार कुरीतियों और पाखंडों को दूर करने के लिए महर्षि दयानन्द जनता को जागृत करना चाहते थे। वह चाहते थे कि लोग अपनी आँखों से वह धर्मभीरुता की वह पट्टी हटा दें जो उन्हें सत्य और स्वतंत्रता का प्रकाश देखने से रोकती है। वह चाहते थे कि कुरीतियों, दुराचार, अज्ञानता और पाखण्ड से मुक्त होकर समाज शुद्ध और दृढ़ बने। भारत पुनः अपने पैरों पर खड़ा होवे और विश्व के राष्ट्रों के बीच उचित स्थान प्राप्त करे।
महर्षि दयानंद की इच्छा थी कि समाज में नैतिकता हो। इसलिए उन्होंने उपदेश दिया कि लोगों को अपने जीवन में धर्म का पालन करना चाहिए। धर्म, कर्म और विचार में सत्यता और वेदों में सन्निहित सद्गुणों को जीवन में अपनाना चाहिए। वह कर्मफल और पुनर्जन्म के सिद्धांतों में विश्वास करते थे। उन्होंने ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास की वैदिक आश्रम व्यवस्था को अपनाने पर जोर दिया। संस्कारों और उपनयन और अग्निहोत्र (हवन/होम) को अपनाने पर बल दिया। गाय की रक्षा के उपाय बताये। पशु बलि, मूर्ति पूजा, पूर्वज पूजा, तीर्थयात्रा, पुजारियों की पोपलीला, जन्मना जातिव्यवस्था, अस्पृश्यता, लिंग भेदभाव और बाल विवाह आदि को वेद विरुद्ध घोषित किया। उन्होंने बिना जाति, लिंग, स्थान आदि के भेदभाव के सभी मनुष्यों को वेद पढ़ने के अधिकार होने की घोषणा की।
इस प्रकार महर्षि दयानन्द ने भारत में पुनर्जागरण के नये युग का प्रारम्भ किया। वह लाखों लोगों के लिए आशा की किरण बन गये। वह चाहते थे कि उनके द्वारा शुरू किया गया कार्य उनके बाद भी जारी रहे और उनके सपने साकार हों। अतः उन्होंने 19वीं शताब्दी में हिंदू समाज के भीतर व्याप्त इन बुराइयों को खत्म करने के लिए समाज के कुछ गणमान्य सदस्यों को चुना और 1875 में बम्बई में औपचारिक रूप से आर्य समाज की स्थापना की।
आर्य समाज कोई नया धर्म या संप्रदाय नहीं है। आर्य समाज सुधार आन्दोलन एवं सामाजिक-धार्मिक संगठन है। इसका उद्देश्य लोगों को सभी अंधविश्वासों और अवैदिक मान्यताओं से दूर ले जाकर वेदों की ओर वापस लाना था। आर्य समाज मिलावट रहित मूल मानव धर्म अर्थात् सनातन वैदिक धर्म की ओर लौटने का आह्वान करता है।
आर्य समाज पुरुषों और महिलाओं के लिए समान अधिकार की घोषणा करता है और कमजोरों व वंचितों की सेवा करता है। आर्य समाज मांसाहार, नशीले पदार्थों और मनोरंजक दवाओं के सेवन का विरोध करता है और प्रकृति के चक्र के अनुरूप स्वस्थ समाज, परिवार और व्यक्तिगत जीवन को बढ़ावा देता है। आर्य समाज वैदिक ज्ञान की सार्वभौमिकता और व्यापकता का प्रचार करता है और मानता है कि व्याकुल और असहाय मानवता को जीने की सही राह दिखाने की क्षमता वेदों में है। वेद ईश्वरीय ज्ञान है जो कि मानवता के कल्याण के लिए है।
आर्य समाज शांति और कल्याण के सार्वभौमिक संदेश के साथ जीवन जीने का एक आध्यात्मिक तरीका है। इसका लोकाचार वैदिक शिक्षाओं पर आधारित इसके दस मार्गदर्शक सिद्धांतों में समाहित है जो विश्व को बेहतर स्थान बनाने के उद्देश्य बने हैं। आर्य समाज एक वैश्विक संस्था है जो ईश्वर, आध्यात्मिकता और जीवन के मूल्यों पर अपनी सरल, तार्किक और समसामयिक विचारधारा के कारण युवा और बूढ़े सहित विभिन्न समुदायों के लोगों को समान रूप से आकर्षित करती है। आर्य समाज देश के प्रति गौरव और देशभक्ति की भावना जागृत कर सच्ची वैदिक संस्कृति और राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा देता है।
आर्य समाज का सदा से यही लक्ष्य रहा है, “कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम् – विश्व को श्रेष्ठ बनाओ”
आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य संसार का उपकार करना है, अर्थात् मानवों के शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक स्तर में सुधार करना।
आर्य समाज के बारे में अधिक और विस्तृत जानकारी के लिए, कृपया आर्य समाज की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएँ।
www.thearyasamaj.com