महर्षि दयानन्द की विशेषताएँ
महर्षि दयानन्द का व्यक्तित्व अत्यंत विशाल था। वे अनेकानेक विशेषताओं के धनी थे। उनके जीवन दर्शन और विचारों से उनकी विशेषताएँ प्रतिबिम्बित होती हैं।
स्पष्टवादी दयानन्द
जो कहना – स्पष्ट कहा – सीधा कहा – दोगलापन मुझमें नहीं है –
मैं अमृत को विष में मिश्रित करके देना नहीं चाहता। सच्चाई को छिपाना महापाप है। अन्त में सत्य ही की जय हुआ करती है।
(श्रीमद्दयानन्द प्रकाश)
अल्पता स्वीकारक दयानन्द
दयानन्द स्वंय को मनुष्य मानते हैं, देवता या ईश्वर नहीं। इसलिए वे सरल स्वभाव से कहते हैं –
हम सर्वज्ञ नहीं और सब बातें हमें उपस्थित (प्रत्यक्ष) भी नहीं। हमारे बोलने में अनन्त दोष होते होंगे। इसका हमें ज्ञान भी नहीं है। दोष बतलाने पर हम स्वीकार करेंगे। सत्य की छानबीन होनी चाहिए, वितण्डा नहीं होनी चाहिए। यही हमारी बुद्धि में आता है।
(पूना प्रव. (उपदेश म.))
परपीड़ा से द्रवित दयानन्द
गोवध और विधवा पीड़ा से दुःख व्यक्त करते हुए –
भाई! इससे अधिक हृदय विदारक दारुण वेदना और क्या हो सकती है कि विधवाओं की दुःखभरी आहों से, अनाथों के निरन्तर आर्तनाद से और गो-वध से इस देश का सर्वनाश हो रहा है।
(श्रीमद्दयानन्द प्रकाश)
गरीब संन्यासी दयानन्द
सन्यासी धर्म का पालन करते हुए –
मैं गरीब संन्यासी हूं। हाथी पर सवारी करना मुझे शोभा नहीं देता। राजपथ पर सैकड़ो लोग पैदल चलते हैं अतः मैं भी पैदल ही जाऊंगा।
(दयानन्द पत्र एवं विज्ञापन)
गरीबों के हितचिन्तक दयानन्द
एक तरफ तो कहते हैं गौरवगाल में हमारे देश में हर दरिद्र’ या सबसे कम पैसे वाले के पास विमान भी थे – दूसरी और वे आज की गरीबी देखते हैं तो द्रवित हो उठते हैं –
क्या आपने कभी उन बन्धुओं का भी चिन्तन किया? जो आपके देश में, लाखों की संख्या में भूख की चिता पर पड़े हुए रात दिन बारहों महीने, भीतर ही भीतर जलकर राख हो रहे हैं? सहस्रों मनुष्य आपके देश में ऐसे हैं जिन्हें आजीवन उदर भरकर खाने को अन्न नहीं जुड़ता उनके तन पर सड़े गले मैले, कुचैले चिथड़े लिपट रहे हैं।
(श्रीमद्दयानन्द प्रकाश)
आत्मविश्वासी माली दयानन्द
आर्यसमाज को वे एक मजबूत संगठन के रूप रूप में देख रहे हैं –
(आर्यसमाज रूपी उद्यान) मैंने अपने सफल सामर्थ्य से भूमि को स्वच्छ बनाकर उद्यान लगाया है। खाद भी इसमें पड़ गया है। जल भी सींचा जा चुका है। अब इसके मुरझाने और कुम्हलाने की कुछ भी चिन्ता नहीं है।
(श्रीमद्दयानन्द प्रकाश)
मृत्युन्जय दयानन्द
एक बार एक प्रशंसक जो सरकारी कर्मचारी भी थे, स्वामी जी को डरते-डरते खण्डन न करने का अनुरोध करते हैं, इस पर दयानन्द की प्रतिक्रिया देखिए –
ठाकुर महाशय! आप हमारे विषय में सर्वथा निश्चिन्त रहिए मैं विपत्ति और बाधाओं के कारण अपने उद्देश्य को नहीं छोड़ सकता। मुझे इन बातों का भय भी नहीं है। हां आप राजकर्मचारी हैं, इसलिए आपको भय भी हो सकता है। सो उससे बचने का सर्वोत्तम उपाय यह है कि श्रीमन्त मेरे स
(श्रीमद्दयानन्द प्रकाश)
निडर दयानन्द
स्वामी जी जब खुलकर असत्य बातों का खण्डन करते थे तो उनके शिष्य घबराकर लोगों के नाराज होने और निरर्थक हमला करने की बात कह देते थे, महर्षि दयानन्द इस विषय पर एक स्थान पर कहते हैं –
आत्मा सत्य है। उसकी सत्ता को न कोई शस्त्र छेदन कर सकता है और न अग्नि जला सकती है। वह एक अजर-अमर और अविनाशी पदार्थ है। शरीर तो अवश्यमेव नाशवान है जिसका जी चाहे इसका नाश कर दे। परन्तु हम देह की रक्षा के लिए सनातन धर्म को नहीं त्यागेंगे, सत्य को नहीं छोड़ेंगे
(श्रीमद्दयानन्द प्रकाश)
व्यावहारिक दयानन्द
दयानन्द बेहद व्यावहारिक जीवन जीते हैं, वो चाहते हैं कि उनकी बातें आगे भी चलती रहें, वे रहे या न रहें –
हमारा शरीर बहुत देर तक नहीं रहेगा। आप आजीवन हमारी पुस्तकों से उपदेश लेते रहना। जहां तक बन पड़े अपने भूले भटके भाइयों को भी सन्मार्ग दिखलाते रहना।
(श्रीमद्दयानन्द प्रकाश)
निर्भीक दयानन्द
जोधपुराधीश को वेश्या से सम्बन्ध रखने के लिए डाँटते हुए
एक वेश्या से जो कि नन्नी कहाती है, उससे प्रेम, उसका अधिक संग और अनेक पत्नियों से न्यून प्रेम रखना आप जैसे महाराजों को सर्वथा अयोग्य है।
(पत्र व्यवहार)