ऐ ऋषि दयानन्द
ऐ ऋषि दयानन्द तेरी युग युग तक अमर कहानी।
हम भूल नहीं सकते हैं की तूने जो कुर्बानी।
तू धर्म का था दीवाना सच्चाई का परवाना।
तू झुका सत्य के आगे तेरे आगे झुका जमाना।
सुन तेरी अद्भुत वाणी दुनिया हो गई दीवानी।
कई तुझे मारने आए लेकिन न मारने पाए।
भला उसको कौन मिटाए जिसको भगवान बचाए।
की कदर कदरदानों ने बेकदरों ने कदर न जानी।
लाखों भूले भटकों को तूने मार्ग दिखलाया।
जो श्रद्धा करके आया उसे श्रद्धानन्द बनाया।
सच तो ये है मुर्दों को तूने बख्शी जिन्दगानी।
बन सच्चा सेवक तूने की देश धर्म की सेवा।
लाखों तेरे अनुयायी तूने बांटी सबको मेवा।
मिलकर जो आज बैठे है सब तेरी है मेहरबानी।
थी धन्य तुम्हारी माता जिसने तुमको था जाया।
धन्य गुरू विरजानन्द जिसने पलट के रख दी काया।
उस लासानी योगी ने तुमको भी किया लासानी।