सौ बार जन्म लेंगे

सौ बार जन्म लेंगे सौ बार फना होंगे।
एहसान दयानन्द के दिल से न जुदा होंगे।

गुजरात की धरती पे सूरज की किरण फूली।
अज्ञान अविद्या के दानव की कमर टूटी।
पुरनूर हुआ भारत फिर अरबो समां होंगे।

निराकार की पूजा को जीवन में उतारा था।
पाषाण का अभिनन्दन कब उसको गवारा था।
मुँह मोड़ लिया जिनसे पत्थर के खुदा होंगे।

आकाश में रोशन हैं ये शम्भु नवर जब तक।
दिन रात है ये जब तक ये शाम तो हर तब तक।
अफसाने दयानन्द के दिल से न जुदा होंगे।

वीर आर्य मुसाफिर से सेनानी दिए हमको।
स्वामी श्रद्धानन्द से बलिदानी दिए हमको।
खूं जिनकी शहादत से हर गम की दवा होंगे।

स्वागत के लिए उनके पाषाण थे या कंकर।
गम खा के बने हनुमंत विष पी के बने शंकर।
फूल उनके मुकद्दर में होंगे भी तो क्या होंगे।