ओ देव दयानन्द

ओ देव दयानन्द देख लिया तेरे कारण।
जन-जन को हम सबको मिला है ये नवजीवन।
तुझे है सौ – सौ वन्दन करें तेरा अभिनन्दन।

हुआ अज्ञानता का दूर अन्धेरा।
घर- घर ज्ञान के दीप जले तेरे कारण।

झाड़ झंखाड़ तूने जड़ से उखाड़ा।
बगिया में नए- नए फूल खिले तेरे कारण।

फटे हुए थे यहाँ दिलों के दामन।
प्यार की सुई से वे सब हैं सिले तेरे कारण।

बहुत भाईयों से भाई छिन चुके थे।
सदियों बाद फिर आन मिले तेरे कारण।

गैर की धमकियों से दबने वाले।
खत्म हुए हैं सब वह सिलसिले तेरे कारण।

हम एक फूंक से ही उड़ जाते थे।
पथिक तूफान से भी अब न हिले तेरे कारण।