दुनिया वालों देव दयानन्द
दुनिया वालों देव दयानन्द दीप जलाने आया था।
भूल चुके थे राहें अपनी वह दिखलाने आया था।
घोर अंधेरा जग में छाया, नज़र नहीं कुछ आता था।
मानव मानव की ठोकर से जब ठुकराया जाता था।
आर्य जाति सोई पडी थी घर घर जाके जगाता था।
बंट गया सारा टुकड़े टुकड़े भारत देश जगीरों में।
शासन करते लोग विदेशी जोश वही था वीरों में।
भारत माँ को मुक्त किया जो जकड़ी हुई थी ज़जीरों में।।
जब तक जग में चार दिशाएं कुदरत के ये नजारें हैं।
सागर नदियां धरती अम्बर जग में पर्वत सारे हैं।
पथिक रहेगा नाम ऋषि का जब तक चांद सितारे हैं।।