महर्षि दयानन्द सरस्वती
ऐसा निराला व्यक्तित्व
जिसमें क्रियाशीलता कूट कूट कर भरी है,
किन्तु सिद्धान्तनिष्ठ होने पर भी जो व्यावहारिक है।
आत्मा और अन्तःकरण की गहराई तक पहुंचा हुआ,
किन्तु सदा वर्तमान की सोचने वाला, तथा अच्छे भविष्य के लिए कर्म-तत्पर है।
सदा परिवर्तित होने वाले संसार से भी उचित को ग्रहण करने के लिए इच्छुक,
किन्तु संसार के अनुचित दबाव के समक्ष न झुकने वाला।
स्वदेश को पुनः विश्व का शिरोमणि बनाने का लक्ष्य,
किन्तु सभी के लिए अच्छे और सुखद जीवन का स्वप्न देखने वाला।
केवल धार्मिक संतुष्टि ही नहीं,
किन्तु सामाजिक और आर्थिक संतुष्टि को लक्ष्य मानने वाला।
वेद
आरम्भ में मनुष्य मात्र का एक ही धर्म था और एक ही धर्मग्रन्थ था— वेद। वेद की शिक्षाओं के अनुरूप जीवनयापन होता था। तब विश्व एक परिवार था और भारत विश्वगुरु माना जाता था। यहीं से सर्वत्र ज्ञान-विज्ञान फैला था।
समय बदला। वेदों की गलत व्याख्याएँ की जाने लगीं। वेद में जो था नहीं, स्वार्थवश भाष्यकारों को वह दिखने लगा। धीरे-धीरे वेदों की शिक्षाओं का लोप हो गया। अनेक मनुष्यों ने अपने-अपने ग्रन्थ रच डाले। अनेक मतमतान्तर प्रचलित हो गए। परिणाम निकला— मानसिक अशान्ति, परस्पर द्वेष, संघर्ष और रक्तपात।
समय ने पुनः सुखद करवट ली। दयानन्द सदृश ऋषि ने वेदों का पुनरुद्धार कर एक नए युग का सूत्रपात किया। महर्षि दयानन्द ने वेदों को सब सत्यविद्याओं का पुस्तक घोषित कर पुनः वेद की ओर लौटने का निर्देश किया। वेदों के सही अर्थ को जन जन तक पहुँचाने के लिए मानव समाज महर्षि दयानन्द का सदैव ऋणी रहेगा।
दयानन्द उवाच
आर्य समाज
महर्षि दयानन्द ने पुनर्जागरण का नया युग प्रारम्भ किया। वह लाखों लोगों के लिए आशा की किरण बन गये। वह चाहते थे कि उनके द्वारा शुरू किया गया कार्य उनके बाद भी जारी रहें और उनके सपने साकार हों। इसके लिए उन्होंने 1875 में बम्बई में औपचारिक रूप से आर्य समाज की स्थापना की।
आर्य समाज कोई नया धर्म या संप्रदाय नहीं है। आर्य समाज सुधार आन्दोलन एवं सामाजिक-धार्मिक संगठन है। इसका उद्देश्य लोगों को अंधविश्वासों और अवैदिक मान्यताओं से दूर ले जाकर वेदों की ओर वापस लाना है। आर्य समाज मिलावट-रहित मूल मानव धर्म अर्थात् सनातन वैदिक धर्म की ओर लौटने का आह्वान करता है।
आर्य समाज शांति और कल्याण के सार्वभौमिक संदेश के साथ जीवन जीने का एक आध्यात्मिक तरीका है। इसका लोकाचार वैदिक शिक्षाओं पर आधारित इसके दस मार्गदर्शक सिद्धांतों में समाहित है जो विश्व को बेहतर स्थान बनाने के उद्देश्य से बने हैं। आर्य समाज देश के प्रति गौरव और देशभक्ति की भावना जागृत कर सच्ची वैदिक संस्कृति और राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा देता है।
महर्षि दयानन्द का प्रिय वेद मन्त्र
ओ3म् विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव।
यद् भद्रं तन्न आ सुव॥
यजुर्वेद 30।3
हे सकल जगत् के उत्पत्तिकर्त्ता, समग्र ऐश्वर्ययुक्त, शुद्धस्वरुप, सब सुखों के दाता परमेश्वर! आप कृपा करके हमारे सम्पूर्ण दुर्गुण, दुर्व्यसन और दुःखों को दूर कर दीजिये, जो कल्याणकारक गुण, कर्म, स्वभाव और पदार्थ हैं, वे सब हमको प्राप्त कीजिये।
महर्षि दयानन्द के हस्ताक्षर
सत्यार्थ प्रकाश
महर्षि दयानन्दकृत ग्रन्थों में सत्यार्थ प्रकाश प्रधान ग्रन्थ है। यह धार्मिक, सामाजिक, शैक्षिक, राजनीतिक और नैतिक विषयों पर महर्षि दयानन्द की शिक्षाओं का संकलन है। इसमें ब्रह्मा से लेकर जैमिनि पर्यन्त ऋषि-मुनियों के वेद-प्रतिपादित विचारों का सार है।
सत्यार्थ प्रकाश का मुख्य उद्देश्य मनुष्यों के समक्ष सत्य-असत्य का यथार्थ स्वरुप प्रस्तुत करना है ताकि वे स्वयं अपना हित-अहित समझ कर सत्य का ग्रहण और असत्य का परित्याग करके सदा आनन्द में रहें। इसमें महर्षि दयानन्द ने जहाँ सनातन वैदिक धर्म के सत्य स्वरुप का प्रतिपादन किया है वहीं अपने-पराये का भेद न करते हुए विभिन्न प्रचलित मत-मतान्तरों की निष्पक्ष तार्किक समीक्षा भी की है।
वास्तव में यह वह प्रकाशस्तंभ है जो मनुष्यों को अंधकार से प्रकाश की ओर, अतार्किकता से तार्किकता की ओर, अधर्म से धर्म की ओर और अज्ञान से विज्ञान की ओर ले जाता है।
श्रद्धांजलि
आज के समय में महर्षि दयानन्द के विचारों की प्रासंगिकता
महर्षि दयानंद ने अपने विलक्षण व्यक्तित्व एवं कृतित्व से 19वीं सदी के पराधीन और जर्जरित भारत को गहराई तक झकझोरा था। उसका प्रभाव हम 21वीं सदी में भी अनुभव कर रहे हैं और उनसे प्रेरणा पाकर उन सामाजिक कुरीतियों व धार्मिक अंधविश्वासों से लोहा ले रहे हैं जो दीमक बनकर समाज व धर्म को भीतर ही भीतर खोखला कर रहे हैं। सामाजिक, धार्मिक, शैक्षिक, आर्थिक, राजनीतिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक जगत की व्याधियों, दुर्बलताओं तथा त्रुटियों का तलस्पर्श अध्ययन ऋषिवर ने किया था, अत: रोग के अनुसार ही उन्होंने उपचार किया। समग्र क्रांति के पुरोधा के रूप में ऋषिवर ने व्यक्ति और समाज के सर्वांगीण विकास तथा कायाकल्प के लिए जो आदर्श जीवन मार्ग दिखाया वह वस्तुत: विश्व इतिहास की अनमोल निधि के रूप में शताब्दियों तक देखा जाएगा।